Wednesday, 19 April 2017

guidance and counselling




निर्देशन एवं परामर्श
निर्देशन
”  स्किन्नर 
 नवयुवकों को स्व अपने प्रति , दूसरे के प्रति तथा परिस्थित्यिओ के प्रति समायोजन करने की प्रक्रिया निर्देशन है ।
” क्रो एंड क्रो ” 
निर्देशन पर्याप्त  रूप से प्रशिक्षित एवं विशेषयज्ञता प्राप्त पुरुषों तथा महिलाओ द्वारा किसी भी आयु के व्यक्ति को सहयता प्रदान करना है ताकि वह अपने जीवन की क्रियाओ को व्यवस्थित कर सके , अपने निजी दृस्टिकोन विकसित कर सके , अपने आप अपने निर्णय ले सके और अपने जीवन का बोझ उठा सके

निर्देशन अंग्रेजी शब्द guidance का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका अर्थ होता है मार्ग दिखाना या मार्गदर्शन ।इस प्रकार मार्गदर्शन एक व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति को सहायता या परामर्श प्रदान करने की प्रक्रिया का नाम हैं।
निर्देशन की आवश्यकता
« शिक्षा संबंधी आवश्यकताबालको को शिक्षा के क्षेत्र में उचित रूप समायोजित होने के लिए एवं प्रगति के लिए मार्गदर्शन चाहिए

« व्यावसायिक आवश्यकताबालक अपनी योग्यताओ तथा शक्तियों के अनुकूल कम चुनने के लिए उचित मार्गदर्शन मिलना चाहिए
« व्यक्तिगत एव मनोवज्ञानिक आवश्यकताबालको को मानसिक उलझनों तनावो तथा चिंताओ से मुक्त करने के लिए मार्गदर्शन की आवश्यकता  हैं

इस प्रकार यदि हम बालको को आत्म-समायोजन तथा सामाजिक समायोजन मे सहायता प्रदान करना चाहते है तो उन्हे विकास मार्ग पर अग्रसर केरना चाहते है तो उनको मार्गदर्शन प्रदान करना होगा

 विध्यालयों मे प्रद्द्त मार्गदर्शन के कार्य को तीन क्षेत्रों मे बाटा है  –
शैक्षिक मार्गदर्शन
व्यावसायिक मार्गदर्शन
व्यक्तिगत मार्गदर्शन

परामर्श
परामर्श किसी व्यक्ति के साथ लगातार प्रत्यक्ष संपर्क की वह कड़ी है जिसका उद्देश्य व्यक्ति को उसकी अभिव्र्ति तथा व्यवहार मे परिवर्तन लाने मे सहायता प्रदान केरना है।                                    ” रोजेर्स ”
परामर्श को स्व – समायोजन की ऐसी प्रक्रिया माना जा सकता है जिसमे परामर्श लेने वाले को इस तरह सहायता की जा सके की वह पहले से अधिक स्व-निर्देशित बन सके ।                                       ” ब्रेमर ”


परामर्श  अंग्रेज़ी शब्द counselling  का हिन्दी रूपान्तरण है , जिसका अर्थ है राय , मशवरा , तथा सुझाव लेना या देना  किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत समस्याओं एवं कठिनाइयों को दूर करने के लिये दी जाने वाली सहायता, सलाह और मार्गदर्शन, परामर्श (Counseling) कहलाता है। परामर्श देने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता (काउन्सलर) कहते हैं।
 निर्देशन (गाइडेंस) के अन्तर्गत परामर्श एक आयोजित विशिष्ट सेवा है। यह एक सहयाेगी प्रक्रिया है। इसमें परामर्शदाता साक्षात्कार एवं प्रेक्षण के माध्यम से सेवार्थी के निकट जाता है उसे उसकी शक्ति सीमाओं के बारे में उसे सही बोध कराता है। उदहारण: सभी समाजों में परामर्श देने और परामर्श प्राप्त करने की परम्परा पायी जाती है।

परामर्श देने या लेने के अपने अपने ढंग तथा तरीके होते है तथा इस प्रक्रिया मे परामर्शदाता तथा परामर्श लेने वाले की अलग अलग स्थितया तथा भूमिकाए होती है तथा उनका अपना अपना योगदान रहता है इन्ही को परामर्श तकनिक या उपागम बोला जाता है मुख्य रूप से ऐसे उपगमों मे तीन का विशेष रूप से उल्लेख होता है जो कि निम्नलिखित है


हैरमिन के अनुसार-
 परामर्श मनोपचारात्मक सम्बन्ध है जिसमें एक प्रार्थी एक सलाहकार से प्रत्यक्ष सहायता प्राप्त करता है या नकारात्मक भावनाओं को कम करने का अवसर और व्यक्तित्व में सकारात्मक वृद्धि के लिये मार्ग प्रशस्त होता है।
मायर्स ने लिखा है- परामर्श से अभिप्राय दो व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की सहायता करता है।
 विलि एवं एण्ड्र ने कहा कि परामर्श पारस्परिक रूप से सीखने की प्रक्रिया है। इसमें दो व्यक्ति सम्मिलित होते है सहायता प्राप्त करने वाला और दूसरा प्रशिक्षित व्यक्ति जो प्रथम व्यक्ति की सहायता इस प्रकार करता है कि उसका अधिकतम विकास हो सकें। ब्रीवर ने परामर्श को बातचीत करना, विचार-विमर्श करना तथा मित्रतापूर्वक वार्तालाप करना बताया है।


परामर्श की विशेषताएँ
(1) परामर्श मूलतः समस्यापरक होता है।
(2) यह दो व्यक्तियों के मध्य वार्तालाप का एक स्वरूप है।
(3) परामर्श का मूल परस्पर विश्वास है।
(4) परामर्शक परामर्शेच्छु को उसके हित में सहायता प्रदान करता है।
(5) मैत्रीपूर्ण अथवा सौहार्दपूर्ण वातावरण में परामर्श अधिक सफल होता है।
(6) जे॰ ए॰ केलर कहता है कि परामर्श का सम्बन्ध अधिगम से होता है। जिस प्रकार अधिगम से व्यक्ति के आचरण में परिमार्जन होता है उसी प्रकार परामर्श से भी व्यक्ति के आचरण में परिमार्जन होता है।
(7) परामर्श, सम्पूर्ण निर्देशन (गाइडेंस) प्रक्रिया का एक सशक्त अंश है।
(8) परामर्श का स्वरूप प्रजातान्त्रिक होता है। परामर्शेच्छु परामर्शक के सम्मुख अपने विचार रखने में स्वतन्त्र रहता है।
(9) परामर्श का आधार प्रायः व्यावसायिक होता है।

परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की भूमिका
परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की भूमिका बहुत  महत्वपूर्ण है ।बालक को प्रत्येक स्थिति पर निर्देशन की आवश्यकता होती है , और बालक के शैक्षिक विकास की जानकारी सबसे ज़्यादा एक अध्यापक को होती है , अत एक शिक्षक  है जो अपने बालक को सबसे सही निर्देशन दे सकती है।
 परामर्श एवं निर्देशन मे शिक्षक की अहम भूमिका है
बालक के विकास मे सहायक
बालको की कमजोरियों तथा स्तर के अनुसार परामर्श या निर्देशन देने मे सहायक
बालको को प्रोत्साहित करने मे सहयाक
बालको को सही दिशा प्रदान केरने मे सहयाक
सूचना या डाटा एकत्रित करना
समस्याओ के कारणो का निदान
उपचार संबंधी उपाय सोचना
व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान करना
अनुसारनात्मक सेवा
 यथास्थिति से परिचित कराना
व्याख्या देना
सामुदायिक स्त्रोत से सीखने के अवसर प्रदान करना


विद्यालय परामर्श:-
 विद्यालय का नाम :- सर्वोदय कन्या विद्यालय मालवीया नगर
 विद्यालय में परामर्श दाता की नियुक्ति है या नहीं :- हाँ
बच्चों की समस्याए:-
                      I.        किशोरावस्था:- बच्चे इस अवस्था में आकर बिगड़ रहे है और ज़्यादातर इस अवस्था के बच्चों में विषम लिंगी के प्रति अकर्षण अधिक देखा जा रहा है तथा धूम्रपान जैसी नशीले पदार्थों का सेवन करती हुई छात्राएँ भी है।

                    II.        कैरियर:- बच्चे आगे क्या करे किस लाइन में जाए उनके लिए क्या सही होगा इसके लिए निर्देशन के लिए आते है।

                   III.        विषय:- आगे की शिक्षा-दीक्षा के लिए विषयों के चयन से सम्बंधित प्रश्न पूछते है तथा किस विषय को चुने इसके लिए मार्गदर्शन।

                  IV.        पारिवारिक:- पारिवारिक स्थिति ख़राब होने के कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर जो प्रभाव पड़ रहा है उसके समाधान के लिए बात करना

परामर्शदाता का व्यवहार:-
विश्वास:- इन सब में सबसे ज़रूरी है विश्वास विश्वास के द्वारा ही बच्चे को संतुष्टि दिलाते है जिससे की बच्चा अपनी समस्या को सामने वाले के सामने रख सके।

दोस्ताना:- परामर्शदाता बच्चों के साथ दोस्ताना बनाती है ताकि बच्चे उनसे बात करने में शर्म महसूस करे बात को कहने में झिझके नहीं।

सहयोग:- बच्चे के साथ सहयोग बनाते है ताकि बच्चों की योग्यता क्षमता के अनुसार मार्गदर्शन तथा परामर्श कर सके।

विद्यालय में निर्देशन और परामर्श की व्यवस्था:-
विद्यालय में परामर्श केवल नाम मात्र हो गया है , परामर्शडाटा के पास स्कूल में बेठने के लिए उचित रूप से कक्ष भी नही है  ! वेह केवल सप्ताह में दो  दिन ही स्कूल आती है ! जिसके कारण उनको स्कूल  से इतना अच्छा संपर्क नही हो पाया था! वेह आवश्यक छात्रों को उचित र्रोप से  परामर्श नही दे पति हैजिनको उचित रूप से परामर्श की अवा शयकता है ! उनसे संपर्क इतना अच नही हो पता है! जितना की उन छात्रों को ज़रूरत है !परामर्श  एक लम्बी प्रम्नाली है , जिसमे  अधिक समय  लगता है! इसकी अवधि बच्चो की अव्शयाकता के अनुसार   उनकी  परेशानी   के अनुसार होनी चाहिए, जिसमे ज्यादा समय लगता है   जो की  कम समय के कारण सही रूप से सफल नही हो पता है!

परामर्शदाता के पास एक छात्रा आयी थी जिसने भागने का भी सोच लिया था लेकिन परामर्शदाता ने उसको सही परामर्श करके ग़लत करने से रोक लिया। जिसके कारण जिन विद्यार्थियों का निर्देशन तथा परामर्श करती है उन्हें पूरी तरह से समय नहीं दे पाती है और उनके साथ दोबारा बातचीत नहीं कर पाती है।

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