Friday, 25 November 2016




UNIT 1

JOURNAL WRITING



(1) Write a short reflective account of significant life experiences.

* मेरा सरकरी स्कूल का पहला दिन

* मेरी पहली साइकिल रेस।

* मेने अपने पापा को खो दिया



(2) Observation of life situations that evoke question & responces.

* लड़कियों से भेद भाव

* धूम्रपान एक बुरी आदत



(3) Questions on education, learning & teaching that he/she is facing.

* गरीब वर्ग में शिक्षा की समस्या।











 मेरा सरकरी स्कूल का पहला दिन



मै 5 वी  कक्षा में थी,  जब मेरे पापा की नौकरी छूट गई थी जिसका प्रभाव मुझ पर और मेरे परिवार पर  पड़ा। मै अपनी कॉलोनी के छोटे से प्राइवेट स्कूल में पड़ती थी जिसका नाम साउथ दिल्ली कॉन्वेंट  स्कूल था। वह स्कूल और प्राइवेट स्कूल जिनका अच्छे दबके का तो नही था किंतु उसकी पढाई सरकारी स्कूलों के हिसाब से बहुत अच्छी थी।  मेरी पापा की नौकरी छूटने के बाद हमारे घर में कमी आमदनी का कोई ज़रिया नही था।  हम 4 भाई बहन है , और सभी की उस टाइम पढ़ाई चल रही थी। बढ़ती मेहगाई   को देख मेरे पापा बहुत परेशान रहने लगे  थे की कैसे इस समाज में गुज़ारा होगा और बच्चो की परवरिश कैसे पूरी कर पाएंगी,  जिसके चलते वह बहुत परेशां रहने लगे। इतना प्रयास करने पर भी उनको नौकरी नही मिल पा रही थी और इधर उस का प्रभाव हमारी पढाई पर दिखने लगा। हमारे स्कूल वाले फीका मांगने लगे और हमारे पापा के पास देने को कुछ था। जिसके कारण हमारा नाम स्कूल से कट   गया। वह समय हमारे लिए किसी पहाड़ से कम नही था मेरे पापा ने हर तरह से कोशिश करी की कोई कोई काम लग जाए किन्तु किस्मत ने साथ नही दिया।

मेरी मम्मी हम बच्चो की पढाई  को लेकर बहुत चिंतित थी तो उन्होंने हमारा दाखिला सरकारी स्कूल में करने का  सोचा मेरे मम्मी पापा भाले ही इतने पड़े हुए नही थे लेकिन वह हमेशा से चाहते थे की हमारी पढाई अच्छी हो उन्ही दिनों में हमारे घर से कुछ ही दूरी पर 1 इंग्लिश मीडियम  सरकारी स्कूल था , तो मेरे माता पिता हमारा एडमिशन वही कराने में लग गए , बहुत प्रयास किया लेकिन  उस स्कुल में 1st से ही एडमिशन होते थे और वह  बाद में किसी का दाखिला नही करते थे।मेरी मम्मी ने बहुत चाहा के हमारा एडमिशन किसी अच्छे स्कूल में हो जाए लेकिन थक हार कर उन्हें हिंदी मध्यम सरकारी स्कूल ही जाना पड़ा

वो मेरे सरकारी स्कूल का पहला दिन था ,  जब मैने अपने नए स्कूल पर कदम रखा तो मेने देखा की सारे बच्चे इधर से उधर भाग रहे है। बहुत शोरगुल हो रहा था ऐसा लग राहा था कि मेरे कान फट जाएंगे। मुझे समझ नही   रहा था क़ी यह सब क्या हो रहा था ज़्यादातर बच्चे बा हर घूम रहे है टीचेर्स अपनी क्लास में  ही  नही है।समाझ ही नही रहा था।कि यहाँ पढाई होती है या लड़ाई। यह हमारे इडियन एजुकेशन सिस्टम की बहुत बड़ी कमी है कि यहाँ पर सरकारी स्कूलों को नज़र अंदाज़ किया जाता है, उन पर ध्यान नही दिया जाता है  जबकि सरकारी स्कूलों को और ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हमारे समाज का आधे से ज़्यादा हिस्सा इन्ही सरकारी स्कूलों में पढता है और यदि आपको अपने देश का विकास करना है तो सरकारी स्कूलों का विकास करना बहुत ज़रूरी है मैं तो चाहती हु की हमारे सभी देश के बच्चो को एक ही तरह के साधन उपलब्ध करे जाए ताकि सभी का विकास 1 ही स्तर पर हो। शुरु शुरू तो मुझे भी बहुत अजीब लगा पर धीरे धीरे मै भी सही का हिस्सा हो गई।











 मेरी  पहली साइकिल रेस



 मैं 6th कक्षा में पास हो चुकी थी , हमारी गर्मियों की छुट्टी पड़ चुकी थी उन दिनों मेरा घर में 1 ही मंज़िल थी तो मेरे पापा भी घर में 2 और मंज़िल बनवा रहे थे , पूरा घर फेल हुआ था हम लोग काम होते में भी वही रह रहे थे मेरे पापा का ऑफिस होता था तो मेरी मम्मी और भाई ही सारा काम का देख रहे थे ।हम 1 भाई और 3  बहन है जिसमे से मेरे भाई सबसे बड़े है और फिर हम तीनो बहने है जिनमे से मै सबसे छोटी हूँ। इसी लिए मेरे घर में कभी मेरी बात नही सुनी जाती , और ही मुझे खुदी  से ज़्यादा बोलने की आदत रही है , मेरे भाई बहनों के रहते मुझे कभी कोई काम करने की ज़रूरत   नही थी सब कुछ मुझे मेरी बड़ी बहन करके देती थी।यह उस समय की बात है  जब मैं  11 साल की होगी ,  1 दिन मेरी दूसरे  नं की बहन  अपने दोस्तों के साथ मुझे बिना बताए ही साइकिल पर , मंडे मार्किट जाने का प्लान बना रही थी     मंडे मार्किट हमारे घर से 3-4 km दूर है लेकिन वहा जाने के लिए हमे मेन रोड क्रोस करना पड़ता था। जो हमने कभी अकेले नही किया था।  उसका और मेरा बचपन में बहुत झगड़ा होता था इसी लिए वो मुझे लेकर जाना नही चाहती थी।मेरी मम्मी ने मुझे बहुत समझाया के तुम अभी बहुत छोटी हो मत जाओ। लेकिन मैंने अपनी मम्मी से ज़िद करके उसके साथ जाने को कहा। मेरी मम्मी मुझे भेजने को राज़ी हो गई। हम लोग जाने के लिए निकल गए, चलते चलते हिमने सोचा की रेस लगाए तो मेरी बहन और उसकी दोस्त में रेस शुरू हो गई, मेरी बहन को इतनी अच्छी साइकिल चलानी नही आती थी इस लिए हमारा एक्सिडेंट हो गया हम दोनों को बहुत चोट आई। मेरा तो दायें पैर पर कार का टायर चढ़ गया बहुत टाके लगे।मै 2 महीने तक बेड  पर ही  रही। मेरी बहन के भी चोट आई थी लेकिन उसको इतनी छोटी नही आई लेकिन मेरे ज़्यादा चोट लगी थी मै तो उसही समय बेहोश हो गई। इससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला , कभी भी किसी की बातों में नही आना चाहिए। और बड़े हमेशा सही  बोलते है, इससे हमारा ही फायदा होता है।मेरी एक्सीडेंट के कारण मेरे घर का काम भी रुक गया ।मेरी छोटी सी भूल के कारण मैने सबको परेशान कर दिया।मुझे इस बात  का बहुत दुःख है।















मैने आपने पिता को खो दिया



 मैं  बचपन से ही  अपने पिता से बहुत जुडी हुई थी। हम 4 भाई बहन है ,जिसमे सबसे बड़े मेरे भाई है  और उन्ही के बाद हम तीनो  बहने है जिनमे से मै सबसे छोटी हूं घर में सबसे छोटी और लाडली होने के कारण सभी लोग मुझे बहुत प्यार करते थे किंतु मेरे पिता और मेरे रिश्ता पुरे घर में अलग ही था , मेरी बड़ी बहन बचपन से बहुत ज़िद्दी है , वो हर चीज़ में ज़िद करती थी  , मेरे जन्म होने के बाद भी उसने हमेशा से ही मेरी मम्मी पर अपना ही अधिकार रखा और मुझे ,मेरी मम्मी को नही लेने देती थी और जिसके चलते में अपने पापा से अधिक लग गई। मै अपने पापा के पास ही सोती थी और हर काम में पापा के पीछे खड़ी रहती थी, अपने पापा के नेल्स काटना हमेशा ही मेरी ज़िममेदारी थी उन्हें मुझसे नेल्स कटवाने में बहुत अच्छा लगता था। मेरे माता पिता कभी भी अपने बच्चो को लेकर पक्ष पात( partial) नही हुए, इन्होंने कभी जताया नही के तुम ज़्यादा अच्छे हो या तुम, किंतु ये बात साफ़ पता चल जाती थी के मेरी माँ का ध्यान मेरी मंजली बहन पर ज़्यादा था और मेरे पिता का मुझ पर।

मैं 11 वीं कक्षा में थी जब मेरे पिता जी बहुत बीमार होने लगे थे, उन्हें मधुमेह रोग था जिसकी वजह से उनकी गुर्दे में इन्फेक्शन हो गया था, वह बहुत बीमार रहते थे , उनका शरीर बहुत कमज़ोर हो गया था उन्हीने खाना पीना छोड़ रखा था ।डॉकटरो के इलाज के बाद भी वह ठीक नही  हो पा रहे थे , वह घर में ही रहने लगे थे उन्होंने  बाहर आना  जाना छोड़ दिया था, इतनी बीमारी होने पर भी वह मुझे  स्कूटर से, स्कूल  लाते और ले जाते थे। उनकी बीमारी के कारण मुझे उन्हें परेशान करना अच्छा नही लगता था मेरे बार बार मना करने पर वह मुझे लेने आते थे। कहते की मुझे अच्छा नही लगता तुम पैदल आती जाती हो। एक दिन उनकी रात में बहुत तबियत खराब हो गई। वह बहुत परेशान होने लगे, उनसे बोला भी नही जा रहा था , उनकी बॉडी  मूवमेन्ट नही कर रही थी। हमें कुछ समझ नही आया तो हम उन्हें हॉस्पिटल लेकर चले गए। डॉक्टरों ने बताया के वो कोमा में चले गए है, वोह एक हफ्ते तक कोमा में रहे।यह् एक हफ्ता हमारे लिए बहुत दर्द से गुज़रा था, हम सबने मिलकर उनके लिए बहुत दुआए मांगी हमसे उनकी हालत देखी नही जाती थी। हमसभी  ने बहुत कोशिश की लेकिन उन्हें बचा नही पाए। और उनका देहांत हो गया। हमारा परिवार उनके बगैर आज भी अधूरा है। दुनिया में माँ बाप की जगह कोई नही ले सकता

मैं कभी भी उनके बगैर एक दिन भी नही रह सकती थी  और अब में  उनके बगैर सब कुछ अकेले ही करती हूं, मुझे उनकी बहुत याद आती है। मैं हर बात पर उन्हें याद करती हूं की अगर वो होते तो क्या करते होते। हमारा परिवार उनके बगैर अधूरा है। दुनिया में माँ बाप की जगह कोई नही ले सकता। इसलिए उनका बहुत आदर और   सत्कार करनी चाहिए, क्योंकि उनकी कमी कोई पूरी नही कर सकता।







लड़कियों से  भेद भाव



" हमारे देश को आज़ादी मिले हुए 70 साल होने को आए है" लेकिन हमारे देश में औरतों को लेकर अभी  भी वही रूढ़िवादी सोच रखते है, हमारे समाज में सबसे बुरी चीज़ लड़कियों के साथ हो रहे  भेद भाव है।यह मुख्य रूप से गरीब वरगों के परिवार  में देखी जाती है आज भी लड़कियों को घर में रहने रखने वाले सामान की तरह देखा जाता है, और सोचा जाता है कि यह घर में ही रहे और घर के कामो में ही दिल लगाए, घरो की शोभा बढ़ाए। इसके विपरीत लड़को को सभी काम करने की आज़ादी दी जाती है, कोई भी पढाई पेश चुनने की आज़ादी होती है।  बहुत से परिवारों में लड़कियों को पड़ने की आज्ञा तो दे देते है किंतु उनको नौकरी करने की आज्ञा नही होती। अच्छे (आर्थिक) धन सबंधित परिवार वालो में भी ऐसी बाते सोची  कही जाती है" कि तुम्हे क्या ज़रूरत है काम करने की, " इसी तरह से यह सोच अमीर वर्गों में भी रखी जाती है, की तुम काम करने की ज़रूरत नही  है। बचपन से ही उनको सिखाया जाता है कि तुम्हे ऐसे बैठना उठना है ,ये खेल लड़को के है ये लड़कियों के है। हमे इसी तरह की  रूढ़िवादी सोच को खत्म करना पडेगा।किसी भी लड़की पर अपनी इच्छा अनुसार पढाई काम करने , रहने की आज़ादी देनी चाहिए, ताकि उनको भी समाज में स्थान प्राप्त, वो भी अपने पैरों पर खड़ी हो सके अपना नाम कर सके। यही कारण है कि हमारा भारत का विकास नही हो रहा है जब तक हम सब लड़कियों के प्रति अपनी सोच नही बदलेंगे तब तक हमारा देश कि आर्थिक सामाजिक स्तिथि  विकसित  नही हो पायेगा। हमे ज़रूरत  है कि हम अपने समाज में औरतों के अधिकारों को बढ़ावा दे। सभी को समान स्तर से देखा जाए और बचपन से ही बचचो  में भेद भाव की भावना पैदा होने से रोके और बताए की कोई छोटा बड़ा या कमज़ोर ताकतवर या कमज़ोर नही होता सब सामान है, हमे अपने समाज की रूढ़िवादी सोच को खत्म करना चाहिए।





धूम्रपान -एक बुरी आदत





"धूम्रपान एक जानलेवा बीमारी है " यह बात हम सभी जानते है, सुनते है  लेकिन अमल नही करते धूम्रपान व् अन्य ज़हरीले, नशीले पदार्थो के कारण हमारे जान भी जा सकती है। छोटे छोटे बच्चे इस तरह की गन्दी  आदतों का शिकार बनते जा रहे है। समाज में इसका हो रहा उपयोग देख कर, यह भी इनका ध्यान इन चीज़ों की तरफ हो जाता है यह कार्य करने के लिए उनको कोई बोलता नही है किंतु फिर भी वो अपने बड़ो आस पास के लोगो  को देख देख कर सिख जाते है, सोचते है कि हमारे बड़े ये खाते है इस्तेमाल करते है तो ज़रूर इसमें कोई अच्छी बात होगी तो ,क्यों हम भी इसका उपयोग करके देखे। ऐसे ही सब देख़ देख कर  वह इस तरह की गन्दी आदतों का शिकार हो जाते है। बहुत से युवा लोग इन चीज़ों का प्रयोग शोक के लिए करते है  ।और इनको पता नही चलता की यही शोक इनकी आदत बन गई है। धूम्रपान , गुटका , शराब व् ड्रग्स आदि ये सभी चीज़े मानव के स्वस्थ पर बुरा असर डालती है। आधी से ज़्यादा बीमारी इन ही गंदे पदार्थो का सेवन करने से बनती है।धूम्रपान  कैंसर का मुख्य कारण बन सकती है।सब कुछ जानते हुए भी सरकार कोई कड़ा कदम नही उठा रही।बस कदम उठाने के नाम पर प्रचार कर देते है। यहाँ तक की गुटके तम्बाखू के रेपर पर भी इतनी गन्दी गन्दी बीमारी वाले चित्र लगाए जाते है जिन्हें देखा भी नही जाता फिर भी लोग उसका खूब उपयोग कर रहे है सरकार को चाहिए  की और अन्य देशों की तरह इन सभी ज़हरीले पदार्थो को बंद गैर कानूनी कर दे ताकि ऐसी चीज़ें देश में हो, खाई जाए ही इनका  उपयोग में लाई जाए। और जो भी व्यक्ति इसका उल्लंघन करे उस पर सख्त कारवाही करी जाए। और इसका उपाय ढूंढे इस पर बहुत ध्यान दे। तभी हम अपने देश को  इन गन्दी आदतों से बचा  सकते है।

















गरीब वर्ग में शिक्षा की समस्या



हमारा देश बटा हुआ है ,  जाति  , धर्म , रंग , लिंग, बोली, रीति रिवाजो  भाषा  के नाम पर,  यह सभी फर्को को ख़तम  करने का  एक ही   उपाए है समाज में शिक्षा का स्तर ऊँचा करना। जिससे हम सभी को जागरूक ता आए | सबसे बड़ा अंतर अमीर और गरीब में है ।जो सभी जगहों में देखा जा सकता है ।सबसे अधिक यह शिक्षा क्षेत्र में देखा जा सकता है ।जैसे की गरीब वर्गों के बच्चो के पास अच्छी  शिक्षा प्राप्त करने के उपलब्ध साधन नही होते ।जिसके कारण उन्हें सरकारी स्कूलों में ही दाखिला लेना पढता है।क्योंकि उनके पास पर्याप्त राशि नही है कि वह अपने  अपना दाखिला प्राइवेट स्कूल में कराए।जिसके कारणउनकी भाषा प्रभावित होती है आज के समाज में जिसके पास अंग्रेजी भाषा का बोध है वह ही विद्वान है ।गरीब वर्ग में उचित शिक्षा हो पाने के कारण , वह बचपन से ही हिंदी माध्यम में पढ़ने के कारण अंग्रेजी में कमज़ोर होते है।उन्हें अंग्रेजी का इतना ज्ञान नही हो पाता जो आगे चलकर उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता गई , वह हर जगह अपनी बात करने में हीचकते है

   यह मेरे साथ भी हुआ ,यह सब मेने भी महसूस किया है ।न चाहते हुए भी मुझे हिंदी माध्यम में पढ़ना पड़ा और हिंदी माध्यम आगे चलकर मेरी पहचान बन गई ।यदि मुझे कोई मदद करता तो मै अपनी इंग्लिश भाषा सुधार सकती थी किन्तु  मुझे बताने वाला कोई था आगे चलकर मेने इंग्लिश  लेनी चाही लेकिन मुझे अंग्रेजी में बहुत परेशानी होने लगी तो मैं इंग्लिश में कुछ कर ही नही पाई। और यह समस्या मुझे अब तक हो रही है।


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