Friday, 25 November 2016

मेरा जीवन मेरा संघर्ष
नाम : उज़मा
जन्म तिथि  : 1 जनवरी २०१६
जन्म स्थान : दिल्ली

मेरा पूरा नाम उज़मा बेगम है। मेरा जन्म 24 दिसम्बर 1992 में हुआ था किंतु मेरे पापा की गलती से मेरी जन्म पत्री पर 1 जनवरी 1992 भर दिया था,जिसके कारण मेरी सभी जगह यही जन्म तिथि चल रही है।मेरे पिता का नाम मिर्ज़ा महमूद बेग है और माता का नाम गौहर बेगम है। मेरे पिता एक्सपोर्ट कंपनी में पैटर्न मास्टसर थे और मेरी माता जी गृहणी है।मेरे परिवार की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं थी जिसके चलते मुझे स्कूल शिक्षा ग्रहण करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता था।और मेरे पिता की नौकरी छूटने के कारण से हम सब घर वाले बहोत प्रभावित हुए। मुझे बचपन से ही पढ़ने का शौक नहीं था किंतु मेरी आरेखान कला ड्राइंग बहुत अच्छी थी और मुझे उनमे बहोत दिलचस्पी थी।मैंने अपने स्कूल में बहुत प्रतियोगिताएं जीती थी। मुझे मेरे स्कूल में हर साल पोस्टर प्रातियोगिता के लिए भेजा जाता था।मुझे संगीत का बहुत शौक है।मैं अपने स्कूल में प्रसिद्ध गायको में से थी लेकिन फ़िर भी मैंने कभी अपनी पढ़ाई से जी नहीं चुराया।मुझे मेरे भाई बहिन  ने मेरी पढ़ाई ममें बहुत मदद की है। वोह मुझे समय समय पर पढ़ाई में मदद करते थे।और जहाँ मुझे परेशानी होती बहुत आराम से समझाते।मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं slow learner में से हूँ।मुझे चीज़े थोड़ी देर से समझ में आती है लेकिन मैं कोई भी चीज़ बिना मतलब समझे नहीं पढ़ना चाहती।

  
प्रारंभिक जीवन

मेरा नाम उज़मा है, मैं एक मुस्लिम फॅमिली  ससे बिलोंग करती हूं।जिसमे मुख्या रूप से वह ही तरह के रूल्स फॉलो किये जाते हैं जैसे और मुस्लिम फॅमिली में होते हैंऔर ख़ास तौर पर लड़कियों के लिय जो अलग तरह के कानून अपनाते हैं।मेरी फॅमिली में हम चार भाई बहिन है। मेरे सब से बड़े भाई है जो मुझसे दस साल बड़े है वो मुझे बहुत प्यार करते हैं।फिर मेरी दो बहनें है वह भी अच्छी है किंतु मुझे बहुत परेशान करती हैं। मेरे पापा नहीं है मुझे उनकी बहुत याद आती है।लेकिन मैं यह किसी से कह नहीं सकती।मेरी लाइफ में मेरे पापा बहुत इम्पोर्टेन्ट थे।अभी भी  ऐसा कोई दिन नहीं होता जब मैं उन्हें याद नहीं करती ।उन्हें गए हुए 6सा हो गए है।मैं बचपन में अपने पापा के बिना एक दिन भी नहीं रह सकती थी पर अब सब कुछ बदल गया है।मेरा जन्म 1 जनवरी 1992 को दिल्ली में हुआ।जब की मेरे घर वाले उत्तर प्रदेश के अमरोहा नमक ज़िले से हैं।पर मेरे पापा की नौकरी के कारण मेरी मम्मी दिल्ली में आयी और यहाँ रहना शुरू कर दिया।अपने घर में सब से छोटे होने के कारण मैं हर काम में पीच्छे रही हूं।क्योंकि मेरे अन्य कार्यो को करने के लिए मेरे भाई बहन हमेशा मेरे साथ होते।मुझे मैथ्स बहूत पसंद है और मेरे शिक्षिक काल में भी मेरी मैथ्स शिक्षकों का बहुत प्रभाव पड़ा है। ऐसा कहां जाता है कि यदि आपको कोई विषय अच्छे से समझ रहा है तो इसका श्रेय आपकी अध्यापिका को जाता है।क्योंकि अच्छा पढ़ाया गया है।

प्राइमरी शिक्षा

मेरी शिक्षा का अनुभव बचपन से ही कठिन रहा है।हम चार भाई बहन हैं।और कमाने वाले सिर्फ एक मेरे पापा थे।जिनकी आय हम लोगों के लिए पर्याप्त नहीं थी।उस पर मेरे पापा की नौकरी जल्दी जल्दी छुटती रहती थी।जिसका असर  घर पर और घरवालो पर पड़ता था।मैं अच्छे प्राइवेट स्कूल में एडमिट थी उसका नाम मालवीय पब्लिक स्कूल था जहाँ मैंने नर्सरी और के-गी की पढ़ाई करि थी।यह बहुत बड़ा स्कूल तोह नहीं था किंतु अन्य सरकारी  स्कूलो से  बहुत बेहतर था।मुझे वहां बहुत अच्छा लगता था।मेरे मोहल्ले के काफी बच्चो ने वही शिक्षा ग्रहण की है।किंतु बढ़ती मंहगाई और स्कूल फीस के चलते मुझे स्कूल से निकाल लिया गया ।उस स्कूल से निकलने के बाद मेरा दाखिला उससे भी छोटे एक प्राइवेट स्कूल में करवा दिया गया।जहाँ मैंने अपने बचपन का सब से महत्वपूर्ण समय बिताया है।मुझ पर उस स्कूल की टीचेर्स का भी बहुत प्रभाव पड़ा है।मेरे प्राइमरी स्कूल में मेरी सब से पसंदीदा मैडम रुबाब् है।जो हमें मैथ्स और सामाजिक ज्ञान पढाती थी।जिनसे प्रेरित हो कर ही मुझे मैथ्स के प्रति प्रेम जागा ।वह हमेशा हमें सारे पाठ अच्छे से समझाती थी और बार बार बताने पर भी गुस्सा नहीं होती थी।अन्य टीचेर्स भी थी पर वह कठोर व्यवहार किया करती थीं तो उनकी कक्षा में बच्चे सिर्फ  पढ़ लेते थे पर समझते कुछ नहीं थे।वे समय मेरे जीवन में सुनहरा था उस समय मुझे कोई फ़िक्र नहीं थी। मेरे पापा कठोर व्यवहार के व्यक्ति थे।किंतु वह अपने बच्चों से कभी क्रूरता से नहीं बोले थे।हमेशा एक मित्र की तरह ही समझते और मानते थे।कभी उन्होंने हमें बहार खेलने और घूमने से मना नहीं किया।उनका बस इतना कहना था कि कभी भी कोई काम बिना बताये मत करो। जहाँ भी जाना है बता कर जाओ।वो समय तो जैसे तेसे निकल गया किन्तु मेरी पढ़ाई समय के साथ अच्छी होती गयी।


मेरा सरकारी स्कूल में पहला दिन

वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकती जब मैं पहली बार सरकारी स्कूल के मुख्य द्वार पर खड़ी थी।और इतना शोर मैंने अपने जीवन काल में कभी नहीं सुना।मेरा पुराना स्कूल एक छोटी सी बिल्डिंग में था परंतु यहाँ तो सब कुछ अलग था।मेरे स्कूल का नाम  गोरमंट  गर्ल्स  सीनियर,सेकेंडरी स्कूल था।यह पुष्प विहार में था।यह मेरे घर से लग भग 3 किलो मीटर दूर था।मुझे सुबह सुबह स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था।मेरे स्कूल की शिक्षा के अतिरिक्त लापरवाही को देख मेरा पढ़ाई से दिल हटता गया ।और मैं पढ़ाई में कमज़ोर होती चली गयी।मैंने जो भी पढ़ाई करेई अपने बल पर करी।सरकारी स्कूलो का हाल व् टीचरो की लापरवाही से तोह सब ही वाकिफ है।हमारे स्कूल में टीचर्स सिर्फ फॉर्मेलिटीज पूरी करने आते हैं।कक्षा में आते थोड़ा समझाते और अपने काम में लग जाते।हमारे स्कूल में कंप्यूटर की सु विधा नहीं थी।बड़े कंप्यूटर के उपयोग को देख, कंप्यूटर आज सभी की प्रथम ज़रूरत बन गया है।मुझे लगता है कंप्यूटर की शिक्षा दिया जाना सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।पहले के लोग पढ़ाई अपने शौक से पड़ते थे।परंतु आजकल के बच्चो के लिए पढ़ाई अनिवार्य हो गयी है।खासकर गरीब बच्चों के लिए क्योंकि उनका तबके के लोगो का ऊपर उठना अत्यंत ज़रूरी है।

माध्यमिक शिक्षा

9 वी कक्षा तक मैं सरकारी स्कूल में पढ़ने की आदि हो चुकी थी।और ट्यूशन के चलते मुझे अपने विषयो में परेशानी नहीं हुई।मेरे शिक्षा का स्तर बढ़ने लगा और मुझे मैथ्स और अच्छी लगने लगी।मई हमेशा से एयरहोस्टेस बनना चाहती थी।किन्तु में जानती थी की मेरा परिवार मुझे इस समाविष्ट क्षेत्र में प्रवेश की आज्ञा नहीं देगा।तो इस दौरान मैंने अपना मन शिक्षक बनने का बना लिया।
जब मैंने अपनी 10 वीं की शिक्षा उत्तीर्ण की तो सब घर वाले बहुत खुश हुए।मेरे 70% अंक आये थे अब तक के अधिकतम अंक मिले थे।मेरे पापा से मेरा घना सम्बन्ध रहा था मैंने अपने पापा से पहले से पास होने पर  साइकिल मांग रखी थी।तो मेरे पापा ने मुझे एटलस की बहुत अच्छी साइकिल ला कर उपहार दी।11 वी कक्षा में पोहचकर मुझे अपने विषय चुनने में बहुत परेशानी हुई।मई हमेशा दूसरों के भरोसे रही हूं।जिसके कारण मैं अपने निर्णय लेने में हमेशा ही हिचकिचाती हूँ।मुझे गणीत तो लेनी ही थी परंतु विज्ञान की पढ़ाई नहीं करना चाहती थी।और ही मुझे सामाजिक विज्ञान और इस से जुड़ी उपविषय पसंद थे।फिर मैंने अपना दाखिला कॉमर्स में करा लिया उस समय मुझे नहीं पता था कि कॉमर्स में कौन कौन से विषय होते हैं।बाद में जब मुझे ज्ञान हुआ तो ख़ुशी ख़ुशी अपनी पढ़ाई शुरू कर दी।

मेरी भोपाल ट्रिप

जब मैं 11वी कक्षा में थी, तो हमारे स्कूल में नयी योजना शुरू की गयी जो की सरकार द्वारा लागू थी, की अंतिम नतीजो में अच्छे अंको से उत्तीण करने वाले बच्चो को  भोपाल ले कर जाया जायेगा।जिनमे से एक मैं भी थी।यह बात सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना रहा।मैंने उसी दिन जाकर अपने माता पिता को बताया तो वो पहले तो मना करने लगे किन्तु मुझे ऐसा अवसर पाते देख उन्होंने मुझे जाने की मंजूरी दे दी। यह मेरी लिए बहुत खास थी क्योंकि मैं अपने जीवन में कभी भी दिल्ली से बाहर घूमने नहीं गयी थी। और वो भी अपनी सहेलियों के साथ जो मुझे बहुत अच्छी लगती थी।
हमने वहाँ तरह तरह के म्यूजियम देखे।हमने सभी प्रसिद्ध स्थानों पर ले जाया गया जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं-- जामा मस्जिद, साइंस म्यूजियम , ऐतिहासिक गुफाएं में घुमाया गया ।यह 3 दिन का टूर था जो की पता ही नहीं चला कब निकल गए।


मेरी कॉलेज की शिक्षा

मेरी स्कूल पूर्ण होने पर मैं आगे अपने कैरियर के बारे में सोचना शुरू करती तो इससे पहले मेरे पिता का देहांत हो गया।जिसके कारण मेरा कॉलेज में एडमिशन रुक गया और मैंने बाद में  B. Com (pass), university of Delhi मे दाखिला ले लिया इसी बीच मेरे घर वाले मेरी शादी की तैयारी करने लगे ।क्योंकि मेरे घर में मैं ही शादी योग्य थी क्योंकि मेरे भाई बहन की शादी हो गयी थी।किन्तु मुझे अपने जीवन में हमेशा ही सोचा था कि मैं कुछ बन कर दिखाउंगी तो मैंने अपनी मम्मी को कहा कि मुझे अभी शादी नहीं करनी पहले पढ़ाई पूरी  करने दी जाए ।मेरे  बहुत से रिश्तेदार व् जानने वाले हैं जिनसे मैं शिक्षक के पद को चुनने के लिए प्रेरित हुयी हूँ।जिनमे मुख्या रूप से मेरी पड़ौस वाली दीदी और मेरी बहन के पति मेरे जीजा जी आते हैं।यह दोनों ही सरकारी स्कूल के टीचर हैं।[शिक्षा से सम्बंधित] आती है तो में उन्ही दोनों से पूछती हु |शिक्षक बनना मेरी ज़िन्दगी का लक्ष्य है|क्योकी इस पद की सम्माज में अपनी ही अलग पहचान होतुई है वेसे टो और भी पद आदरणीय होते है |परन्तु मुझे अपने लिए इससे ज्यादा कोई और पेशा अच नही लगता है | और  यह काम समय काल के होने के कर्ण अधिक उपयोगी हो जाता है | बच्चो को पढ़ना वह समझाना आसान कार्य नहीं है इस पर ही इसक भाविस्घ्य टिका हुआ होता है | किन्तु में पनी पूरी निष्ठां के साथ इस पद केलिए पूर्ण करना चाहती हु और चाहती हु की में अपने विद्यार्थियों के लिए रोल मोडल बनू मेरा हमेशा से येही नियम रहा है की जो करू पूरी निष्ठां के साथ करू | इसलिये में अपनी पढाई में अपनी तरफ से पूरा योग दान देती हु मेने बहुत परिश्रम किया और अपनी परीक्षा की तयारी करने लगी |इतने में ही मेरी मम्मी को मेरी शादी के लिए लग गई | वह कहने लग गई कीइसकी   ग्रदुअतीओन पूरी होते ही  शादी कर दो |”  किन्तु मेंरे भाई ने उन्हें समझाया की   इसको टीचर बनना है वो पूरा होने दो फिर सोचेंगे शादी का | अकिर्कार मेरी ग्रेजुएशन पूरी हो गई  लेकिन मेरा रिजल्ट अच्छा नही आया | मेरी 49.09% बनी जो की मेरी बी एड दाखिले के लिए पूर्ण नही थी |मुझे कुछ समझ नही अरहा  था के अब क्या करुँगी |मेरे जीवन का एक मकसद था जो भी टूटता जा रहा है |मेरे घर वालो ने मुझे आशा दी के हम दुबारा से  इम्प्रोव्मेंट का  फॉर्म भाल लेंगे |फिर तुम्हारे अंक अच्छे हो जाएँगे |

मुझे कुछ राहत मिली और मेने अपनी improvement का फॉर्म भरा लेकिन मन में एक दार भी था की यदि मेरे अंक कम हो गए टो क्या होगा |लेकिन फिर भी मेने सब कुछ अपने इश्वर पर छोड़  दिया | और सुधार फॉर्म भर दिया | और परीक्षा की तयारी ल्कारने लग गईमुझे अपने आप पर पुर भरोसा होने लगा के अब टो मई ज़रूर ही अच्छे अंक प्राप्त कर लुंगी | उस समय मेरे भविष्य की नीव राखी जाने लगी थी|अगर मेरे अंक सही नही होते टो मई बी एड नही कर सकती थी |मेरा परिणाम अगया लेकिन मुझे उनिवेर्स्टी पर बहुत गुस्सा अरहा था | मेरी इतनी म्हणत के बाद भी 0.०३% ही अंक बढाए | इतने परिश्रम करने पर भी इतने गंदे अंक मुझे यकिन नही आरहा था |
अब मई अपनी बीएड की तयारी करने लगी और जो पहले से ip यूनिवर्सिटी से बीएड  कर चुके है  उनसे पूछ ताछ करने लगी | मुझे यह पता था, की मेने ip युनिवेर्स्टी से ही करना है, क्योकि मेने इसका बहुत नाम सुना था |   फॉर्म निकलते ही मेने  फॉर्म भर दिया और पढना शुरू कर दिया | मेरा  बीएड में एडमिशन हो गया |

 मेरा IVS में सफ़र

मुझे IVS का  सफ़र बहुत अच्छा लगा क्योकि मेरा  पहले अनुभव था , रेगुलर कोलेज में | मुझे ये तो पता था की  रेगुलर कोलेज में पढाई बहुत कठिन होती है | लेकिन यहाँ का सबसे कठिन कार्य कंप्यूटर का है | यहाँ सब डिजिटल फॉर्म में होता है  |क्योकि मेरे घर में कंप्यूटर नही है और मैंने कभी कंप्यूटर का काम भी कभी नही किया |लेकिन में पूरी कोशिश कर रही हु दिगिग्तल वर्क सिखने कीबीएड में कार्य अधिक होता है और समय पर्याप्त नही होता |यहाँ आकर मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है |मेरी पढाई के चलते मुझे बहुत परेशानी आती है |  मै  अपना समय में घर में भी नही दे पाती  | मै हिंदी मध्यम की हु , तोह मझे और परेशानी हो रही है |
मेरा लक्ष्य है की  सभी राज्यों में सम्मान स्टार पर पढाई की जाए  और  स्सरकारी स्कूलों की शिक्षा को सुधार जाए क्योकि  जबतक हम अपने देश में गरीब वर्गों की स्तिथि नही सुधारेगे तो  देश का कल्याण होना असंभव है|
यहाँ आकार मेरे शिक्षअ स्टार पर बहुत सुधार हो रहा है | मेरे ज्ञान के कौशल बाद रहे है मुझे सुचना औरसंप्रेक्षण  तकनीक का अधिक बोध हो रहा हैं |


शिक्षा का महत्व

शिक्षा का महत्व आज कल बढता जा रहा है| यह हमारी ज़रूरत बनती जा रही है| हमे अपने देश का स्टार बढाने  के लिए  ज़रूरी है की हम शिक्षा के स्तर को और बढाए सभी छात्र अपने अपने कार्य शक्षम , निष्ठां से करे | शिक्षा से हम अपने जीवन की कमियों को दूर क्र सकते हैशिक्षा से ही व्यक्ति के जीन का विकास होता है |जिसके चलते सभी में अपने अधिकारों और स्वस्थ अदि का बोध होता है| जिससे सम्माज का कल्याण होगा | यहाँ   दाखला  लेना मेरे लिए एक सपने से कम नही था पर यहाँ आने के बाद तो मेरी दुनिया ही बदल गई। मुझे यहाँ पड़ना बहुत अच्छा लगता है किंतु यहाँ हर काम कंप्यूटर के द्वारा करना  होता है जो की मेरे बस में नही था। क्योकि  मेने कंप्यूटर का कभी इतना प्रयोग नही किया था। यहाँ जो cca क्रियाकलाप होते है मुझे बहुत पसंद है। सभी cca क्रियाकलाप  करने में बहुत खुश होते है। सबके चेहरे पर एक अलग ही उत्सुकता होती है।
मुझे शुरू शुरू में बी  एड ने बहुत प्रिब्ल्म हुई क्योंकि मेरी शिक्षा अभी तक कॉररेस्पोंडेंक्स से हुई है | लेकिन यहाँ प्राइवेट पढाई का  मुझे कोई आईडिया नही था। मेने पहले सुना था कि ब् एड में बहुत फाइल बनती है और टीम भी कम था किंतु यहाँ तो टाइम दुगना हो गया फिर भी काम काम नही हुआ है।ब् एड में बहुत काम दिया जाता है। काम देना अच्छी बात है पर अपने सिलेबस का हो तो यह तो पूरा बाहर से देते है और सारा काम फ़ालतू का लगता है। जिसकी वजह से हम लोग बहुत परेशान है। काम भी ऐसा है जो बिलकुल समझ नहीं आता।
 घर वाले भी परेशान रहते है हमें ऐसा देख कर। ऊपर से मेरे सामने तो और ज़्यादा परेशानी उत्पन्न होती है क्योंकि मैं हिंदी माध्यम से हूँ और कॉलेज में सारी पढ़ाई अंग्रेज़ी माध्यम में होती है जिसकी वजह से मुझे बहुत परेशानी होती है जबकि हिंदी माध्यम के बच्चों की संख्या ज़्यादा है और हमारे पास बहुभाषिकता विषय है जिसमें साफ़ साफ़ लिखा है कि कक्षा को बहुभाषी होना चाहिए पर यहाँ ऐसा नहीं है कॉलेज वालो का इस बात का ध्यान रखना चाहिए और हिंदी के अध्यापको की व्यवस्था करनी चाहिए। क्योंकि जो बच्चे हिंदी के शिक्षक बनेगे वी क्या हिंदी को अंग्रेज़ी में पढ़ाएँगे ऊपर से इस का हमारे परिणाम पर भी असर पढ़ेगा। इसलिए हिंदी के अध्यापको की भी व्यवस्था करनी चाहिए। और जब भारत की हिंदी है भाषा है तो यहाँ के लोग अंग्रेज़ी को क्यों था राज करने दे रहे है हर देश की अपनी एक भाषा होती है मगर भारत में ऐसा नहीं है। था पर हर भाषा को माना जाता है।
    हमें ऑब्ज़र्वेशन के लिए स्कूल में भेजा गया जहाँ हमें बहुत अच्छा लगा बिलकुल भी मन नहीं था वहाँ से वापस आने का दिल कर रहा था और दिन मिलते लेकिन कॉलेज वालो ने हमें वहाँ भी नहीं छोड़ा इतना सारा काम दिया की बस क्या बताए सब बच्चे बहुत परेशान है। जब हम स्कूल ऑब्ज़र्वेशन पर गए तो हमने वहाँ पर देखा कि स्कूल व्यवस्था बहुत ही ख़राब थी बच्चों के बैठने के लिए डेस्क ठीक नहीं थे।ऊपर से अध्यापक कक्षा में भी नहीं आते थे। और बच्चे बहुत बदतमीज़ थे। ऊपर से जब हमें ये पता चला कि ऑब्ज़र्वेशन के बाद हमारी परीक्षा है तो यह सुनकर तो मानो हमारे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई सभी ने अध्यापको को परीक्षा लेने से मना किया क्योंकि सभी बच्चे फ़ाइले बनाने में व्यस्त थे तो वो कैसे परीक्षा देंगे।
      और किसी भी बच्चे ने पढ़ाई नहीं की है कि वह परीक्षा में कुछ लिख सके। अब सभी बच्चों के सामने यह समस्या है कि वह परीक्षा में क्या देंगे क्योंकि उन्होंने कुछ पढ़ा भी नहीं और उनके पास नाट्स भी नहीं है कि वह उसमें से पढ़ सके। शिक्षकों ने तो अपना कार्य पूरा करवा दिया लेकिन हमारे पास भी तो समय होना चाहिए कि हम घर जा कर कुछ पढ़ सके सारा वक़्त तो हमारा कॉलेज में ही निकल जाता है तो हम कैसे काम करे।

       इस तरह बी.एड में इतना सारा काम होने की वजह से सभी बच्चे बी.एड छोड़ना चाहते है क्योंकि इतना सारा काम होने की वजह से क्योंकि हम सभी बहुत परेशान हो गये है माना की काम होता है मगर इतना नहीं होता कि बच्चे रो पढ़े। इसलिए सभी को कहते है बी.एड मत करना क्योंकि बहुत काम करना पढ़ता है यह बी.एड रुला कर रखा देता है लेकिन काम की भी एक सीमा होती है जो बी.एड में तो नहीं है पता नहीं इतना काम क्यों करवाते है इतना काम बी.एड में।बस अभी यही दुआ है प्रबेश लिया है तो अच्छे से हो जी जाए बी.एड। और हमे अची सी नौकरी मिल जाए | और अहम सभी अपने मकसद में कामयाब हो जाए |